Magar Ka Shikar Munshi Premchand मगर का शिकार मुंशी प्रेमचंद


Magar Ka Shikar Munshi Premchand
मगर का शिकार मुंशी प्रेमचंद
मेरा गाँव सरजू नदी के किनारे है। न जाने क्‍यों सरजू में ऐसे जानवर बहुत रहते हैं। एक मर्तबा की बात है कि मैं नदी के किनारे पार जाने के लिए आया तो देखा कि कई मछुए एक बकरी के बच्चे को लिये दरिया के किनारे चले आ रहे हैं। उनमें से एक के हाथ में एक बड़ा-सा छुरा भी था। मैंने समझा कि इसे लोग हलाल करने के लिए लाये हैं। मैंने कहा--इसे चाकू से क्‍यों हलाल करते हो, खड़ग से क्‍यों नहीं मारते ? इसपर एक आदमी ने कहा--हजूर, इसे हलाल नहीं करेंगे, इससे मगर का शिकार करेंगे।

मैंने कहा-कैसे ?
'हजूर, चुपचाप देखिए ।'

मैं पार जाना भूल गया। वहीं मगर का शिकार देखने के लिए ठहर गया । देखा कि लोगों ने उस बकरी के बच्चे को एक पेड़ के नीचे बाँधा । वह पेड़ दरिया से कुल बीस गज पर था। इसके बाद उन्होंने एक हाड़ी से कुछ जोंक निकाले और उन्हें बकरी के बच्चे पर लगा दिया । जब बच्चा मैं मैं करने लगा तो हम लोग एक पेड़ की आड़ में छिप गये और मगर का इंतज़ार करने लगे ।

मगर का एक अजीब स्वभाव यह है कि वह जिस रास्ते से दरिया से निकल कर आता है, उसी रास्ते से दरिया की ओर लौटता भी है । जिससे वह रास्ता न भूल जाय ।

कोई घंटा-भर बैठने के बाद हम लोगों ने एक मगर को पानी से सिर निकालते देखा । हम लोगों ने चुप्पी साध ली । मगर ने डुबकी लगाई और गायब हो गया । इधर बकरा मैं मैं करता ही रहा। कोई तीन-चार मिनट के बाद मगर ने फिर सिर निकाला और धीरे-धीरे किनारे पर चढ़ आया और इधर-उधर बड़े ध्यान से देखने लगा। जब उसे मालूम हो गया कि यहाँ बिल्कुल सन्नाटा है, तो वह रेंगता हुआ बच्चे के समीप गया। बच्चे के बिल्कुल पास पहुँचकर उसने फ़िर एक बार इधर-उधर गौर से देखा और जब फिर उसे कोई न दिखाई दिया, तो उसने झटपट बच्चे की गरदन पकड़ ली।

उधर उन मछुओं में से एक आदमी वही चाकू लिए हुए चुपके से दरिया के किनारे पहुँच गया और ठीक उसी जगह जहाँ मगर दरिया से निकला था, चाकू को इस कदर ज़मीन में गाड़ा कि उसकी नोक जमीन से कोई दो इंच निकली रहे। जब वह चाकू गाड़कर लौटा तो सब-के-सब एक साथ चिल्लाकर आड़ से निकले और अपने सोटे लिए हुए मगर के पीछे दौड़े। अचानक इतने आदमियों को अपने ऊपर हमला करते देखकर मगर घबड़ा गया और जल्‍दी से नदी में उतर गया । वह तो डुबकी लगाकर गायब हो गया; लेकिन उस जगह नदी के पानी का रंग लाल-ही-लाल दिखाई देने लगा ।

मछुए खुश हो-होकर उछल पड़े और कहने लगे--बस, मार दिया। मैंने ताज्जुब से पूछा--मगर तो भाग गया, तुमने मारा कहाँ !
एक मछुए ने कहा--ज़रा सब्र तो कीजिए, अभी देखिएगा ।
मेरी नज़र चाकू की नोक पर पड़ी तो मैंने देखा कि वह बिलकुल लाल हो गई है और उस जगह से दरिया तक लाल ही लाल दिखायी देता है।

कोई पन्‍द्रह-बीस सिनट के बाद वे लोग चिल्ला उठे--वह निकला, वह निकला । सचमुच बीच दरिया में एक मगर की लाश तैर रही थी । उसका पेट चिरा हुआ था और उस वक्त भी खून बह रहा था ।

वह लोग नाव पर सवार होकर बीच दरिया में गये और मगर को जाल में फंसाकर किनारे लाये । एक आदमी फ़ौरन दौड़ता हुआ गया और एक बैलगाड़ी लाया। लोगों ने मगर फो बैलगाड़ी पर लादा और चल दिये। इतना बड़ा मगर मैंने न देखा था। वह कोई १५ फीट लम्बा था।




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