Irshya Ka Phal: Lok-Katha (Jharkhand) ईर्ष्या का फल: झारखण्ड/मुंडारी लोक-कथा


Irshya Ka Phal: Lok-Katha (Jharkhand)
ईर्ष्या का फल: झारखण्ड/मुंडारी लोक-कथा
एक गाँव में सात भाई रहते थे। छह भाई खेतीबारी का काम करते थे। सबसे बड़ा भाई बुद्धिमान तथा पढ़ा-लिखा था। वह राजदरबार में नौकरी करता था। वह सवेरे-सवेरे गर्म-गर्म दाल-भात खाकर नौकरी पर चला जाता था।

सबसे छोटे भाई को बड़े भाई से ईर्ष्या हो गई। उसने अन्य भाइयों से कहा, “बड़े भाई को दरबार में परिश्रम नहीं करना पड़ता, फिर भी उन्हें सबसे पहले ताजा खाना मिल जाता है। हम लोग खेतों में अधिक परिश्रम करते हैं और हमें ठंडा भोजन मिलता है। यह बर्दाश्त से बाहर की बात है।”
सभी भाइयों ने उसे समझाया, “बड़े भाई का काम बड़ी बुद्धिमानी का है।"

छोटे भाई ने कहा, “मुझे मालूम है कि उसका काम बड़ा नहीं, बड़े आराम का है। वह काम मैं भी कर सकता हूँ। कल मैं ही उसकी जगह पर काम करने जाऊँगा।”

पाँचों भाइयों ने उसे समझाया कि देखा-देखी करना ठीक नहीं है। लेकिन छोटे भाई ने नहीं माना। बड़े भाई को जब यह बात मालूम हुई, तो उसने मुस्कराकर कहा, “ठीक है, मैं कल नहीं जाऊँगा। दरबार में वही जाएगा।"
दूसरे दिन सवेरे ही वह गरमा-गरम भोजन करके दरबार में पहुँचा और अपने भाई की कुर्सी पर अकड़कर बैठ गया।
इस नए आदमी को दरबार में देखकर राजा ने पूछा, “वह कौन है, पुराना कर्मचारी कहाँ है?"
छोटे भाई ने कहा, “आज भाई की जगह मैं यहाँ विचार देने आया हूँ।”
राजा ने उससे एक प्रश्न किया, “बंदूक की एक ही गोली हिरण के पाँव और कान में कैसे लग सकती है?”

छोटा भाई काफी देर तक नीचे-ऊपर देखता रहा। उसे कोई जवाब सूझ नहीं रहा था। उसने कोई जवाब नहीं दिया, तो राजा ने आदेश दिया कि इस कुंदबुद्धि वाले आदमी को दिनभर एक पाँव पर खड़ा रखा जाए। वह सारा दिन एक ही पाँव पर खड़ा रहा। छुट्टी होने पर घर आया, तो वह बहुत उदास था। लजाते-लजाते उसने भाइयों से सारी बातें बता दीं। और कहा, “कि सचमुच दरबार का काम बहुत भारी होता है। भला बताइए, एक गोली से पैर और कान दोनों जगह कैसे हिरण को चोट लग सकती है? इसका उत्तर नहीं देने पर राजा ने मुझे सजा दे दी।"

बड़े भाई ने हँसकर कहा, “केवल खाना खाने के लोभ से ही तुम्हें दंड भोगना पड़ा। कोई बड़ा सवाल तो था नहीं! जिस समय हिरण पैर से कान खुजलाता हो, उसी समय गोली मारने से पैर और कान दोनों जगह चोट आएगी।"

बड़े भाई की बात सुनकर छोटे भाई ने लज्जा से अपना सिर नीचा कर लिया।

(सत्यनारायण नाटे)




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