Ek Thi Saruma: Lok-Katha (Assam) एक थी सरुमा : असमिया लोक-कथा


Ek Thi Saruma: Lok-Katha (Assam)
एक थी सरुमा : असमिया लोक-कथा
असम के ग्वालपाड़ा जिले में एक नदी के किनारे लक्ष्मीनंदन साहूकार रहता था। घर में पत्नी व एक बच्ची सरुमा के सिवा कोई न था। परंतु भाग्य पर किसका बस चला है?

तीन दिन के बुखार में ही सरुमा की माँ के प्राण जाते रहे। लक्ष्मीनंदन ने सरुमा को बहुत समझाया परंतु बच्ची दिन-रात माँ के लिए रोती रहती।

लक्ष्मीनंदन के चाचा ने उपाय सुझाया, 'क्यों न तुम दूसरा ब्याह कर लो, बच्ची को माँ भी मिल जाएगी। तुम्हारा घर भी सँवर जाएगा।' साहुकार ने सोच-विचारकर दूसरे विवाह का फैसला कर लिया।

सरुमा की सौतेली माता का स्वभाव अच्छा न था। साहूकार को राजा के काम से कुछ महीने के लिए बाहर जाना पड़ा। उसके घर से निकलते ही माँ ने सरुमा के हाथ में मछली पकड़ने की टोकरी थमाकर कहा,
'चल अच्छी अच्छी खावाई मछलियां पकड़ कर ला।'

बेचारी छोटी-सी सरुमा को मछलियाँ पकड़नी नहीं आती थीं। वह नदी किनारे बैठकर रोने लगी। तभी पानी में हलचल हुई और एक सुनहरी मछली ने पानी से सिर निकाला।
'सरुमा बिटिया, मैं तुम्हारी माँ हूँ। तुम रोती क्यों हो?'
उसकी बात सुनकर मछली ने उसे खाने को भोजन दिया और उसकी टोकरी मछलियों से भर दी।

विमाता को पता लगा तो उसने सरुमा का नदी पर जाना बंद करवा दिया। एक दिन चिलचिलाती धूप में उससे बोली, 'चलो, सारे बाग को पानी दो।'

भूखी-प्यासी सरुमा पेड़ के नीचे बैठी रो रही थी। उसकी मरी हुई माँ एक तोते के रूप में आई। उसने सरुमा को मीठे-मीठे फल खाने को दिए और रोज आने को कहा।

विमाता तो सरुमा को भोजन देती नहीं थी। सरुमा रोज पेड़ के नीचे बैठ जाती और तोता उसे मीठे-मीठे फल खिलाता।
सौतेली माँ ने यह बात सुनी तो वह पेड़ ही कटवा दिया। सरुमा का बाग में जाना भी बंद हो गया।

फिर उसकी माँ एक गाय के रूप में आने लगी। सौतेली माँ ने देखा कि सरुमा तो दिन-रात मोटी हो रही है। उसने पता लगाया कि एक गाय रोज सरुमा को अपना दूध पिलाती है।
सौतेली माँ ने गाय को मारने की कोशिश की परंतु गाय उसे ही सींग मारकर भाग गई।

वह गुस्से से आग-बबूला हो गई। सरुमा पर कड़ी नजर रखी जाने लगी। कुछ दिन बाद उसने देखा कि सरुमा घर के पिछवाड़े खेती में से टमाटर तोड़कर खाती है।

उसने वह पौधा बेरहमी से उखाड़ दिया। सरुमा को एक कमरे में बंद कर दिया। भोली-भाली सरुमा को उसने पीने के लिए पानी तक न दिया। सरुमा की माँ ने एक चूहे का रूप धारण किया। उस अँधेरे कमरे में वह सरुमा के सामने जा पहुँची! आँखों में आँसू भरकर बोली-

सरुमा मत रो, मैं आई हूँ
तेरे लिए भुने कराई (अनाज का मिश्रण) लाई हूँ

सरुमा ने जी भरकर कराई खाया ओर मां द्वारा लाया गया पानी पिया। बंद कमरे में भी सरुमा फल-फूल रही है, यह देखकर सौतेली माँ ने उसे जान से मारने का निश्चय कर लिया। साहूकार के लौटने में चार दिन की देर थी। सरुमा की माँ ने उसे ऐसे वस्त्र दे दिए, जिसे पहनकर वह सुरक्षित हो गई।

उन वस्त्रों पर तलवार के वार का असर नहीं होता था। सौतेली माता का हर वार खाली गया। साहुकार लौटा तो सरुमा के लिए बहुत-सा सामान लाया। वह सरुमा को पुकारने लगा। तभी कमरे में से आवाज आई।
'अगर सरुमा के प्राण बचाना चाहो तो नई माँ को धक्के देकर निकालो'

लक्ष्मीनंदन ने सरुमा से सारी पिछली बातें सुनीं तो उसे पत्नी पर बड़ा गुस्सा आया। ज्यों-ही वह बाजार से लौटी तो लक्ष्मीनंदन ने उसे घर में घुसने नहीं दिया। वह रोती-कलपती अपनी माँ के घर लौट गई।

सरुमा अपने पिता के साथ सुख से रहने लगी। उस दिन के बाद माँ की आत्मा फिर नहीं आई।

(रचना भोला 'यामिनी')




Comments

Popular posts from this blog

Phool Ka Mulya : Rabindranath Tagore (Bangla Story) फूल का मूल्य : रबीन्द्रनाथ टैगोर

Sewa Aur Bhakti: Lok-Katha (Nepal) सेवा और भक्ति नेपाली लोक-कथा

Sher Aur Ladka Munshi Premchand शेर और लड़का मुंशी प्रेमचंद