सोने का भिक्षापात्र: उत्तर प्रदेश की लोक-कथा


Sone Ka Bhikshapatar: Lok-Katha (Uttar Pradesh)
सोने का भिक्षापात्र: उत्तर प्रदेश की लोक-कथा
अयोध्या में चूड़ामणि नाम का एक व्यक्ति रहता था। धन पाने की इच्छा से उसने बहुत दिनों तक भगवान की तपस्या की। उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर एक रात धन देवता कुबेर ने उसे सपने में दर्शन दिए।

उन्होंने कहा- "सूर्योदय के समय तुम हाथ में लाठी लेकर घर के दरवाजे पर खड़े हो जाना। कुछ देर बाद तुम्हारे पास एक भिक्षुक आएगा। उसके हाथ में एक भिक्षापात्र होगा। जैसे ही तुम उस भिक्षा पात्र में अपनी लाठी अड़ाओगे वह सोने में परिवर्तित हो जाएगा। उसे तुम अपने पास रख लेना। ऐसा दस दिन करने से तुम्हारे पास दस सोने के पात्र हो जाएंगे। जिससे तुम्हारी जीवनभर की दरिद्रता दूर हो जाएगी।'

रोज सुबह उठकर चूड़ामणि वैसा ही करने लगा, जैसा कुबेर ने सपने में बताया था। एक दिन उसे ऐसा करते हुए लालची पड़ोसी ने देख लिया। बस उसी दिन से चूड़ामणि का पड़ोसी नित्य प्रति किसी भिक्षुक की प्रतीक्षा में अपने घर के दरवाजे पर लाठी लिए खड़ा रहता।

बहुत दिन बाद अंतत: एक भिक्षुक उसके दरवाजे पर भिक्षा मांगने आया। पड़ोसी ने भिक्षापात्र पर डंडा छुआया पर वह सोने में नहीं बदला। अंत में उसे गुस्सा आया और उसने आव देखा न ताव भिक्षुक पर प्रहार करना शुरू कर दिया। थोड़ी देर में भिक्षुक के प्राण-पखेरू उड़ गए। उसके इस कर्म की सूचना राजा तक पहुंची। राजकर्मचारी उसे गिरफ्तार कर राजा के सामने ले गए अभियोग सिद्ध किया गया।

लालच ने पड़ोसी को मौत के मुंह तक पहुंचा दिया।




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