जयललिता की सासू माँ: कर्नाटक की लोक-कथा


Jayalalita Ki Sasu Maan: Lok-Katha (Karnataka)
जयललिता की सासू माँ: कर्नाटक की लोक-कथा
कई वर्ष पहले की बात है। कारापुर जंगल के पास वाले एक गाँव में जयललिता रहती थी। विवाह के पश्चात्‌ जब वह ससुराल पहुँची तो सासू माँ ने लपककर उसे गले से लगा लिया। परंतु कुछ ही दिनों में सासू माँ जान गई कि बहू घर के काम में एकदम अनाड़ी है। अब क्या हो? घर तो चलाना ही था। उन्होंने बहू से कहा-

'जयललिता, मुझसे पूछे बिना कोई काम मत करना। यदि ऐसा किया तो कुलदेवता का शाप लगेगा।'

बहू ने सिर हिलाकर हामी भर दी। फिर तो बस सारा दिन घर में यही आवाज़ें आतीं- 'माँ जी कद्दू की सब्जी बना लूँ? आटा कितना पीसना है? भैंस को चारा कब देना है? मैं बाल बाँध लूँ? लोटे से पानी पी लूँ आदि।'

कुछ दिन तक सब ठीक-ठाक चलता रहा। एक दिन मामूली से बुखार में सासू माँ चल बसीं। अब क्‍या हो सकता था? जयललिता ने दिमाग लगाया और मिट्टी की सुंदर गुड़िया बनाई। उसी को वह सास मानकर घर का काम-काज करती।

कोई भी काम करने से पहले वह मूर्ति से अवश्य पूछती। उसके पति मल्लण्णा ने भी कभी कुछ नहीं कहा। एक दिन जयललिता मूर्ति को अपने साथ बाजार ले गई। सामान की खरीदारी से पहले सासू माँ की आज्ञा भी तो आवश्यक थी।

उसने बाजार में सारा सामान मूर्ति से पूछ-पूछकर खरीदा। मल्लण्णा भी साथ ही था। वापसी पर बहुत अँधेरा हो गया। घने बादलों के छाने से हाथ को हाथ नहीं सूझता था। बरसात आने के पूरे आसार थे। हारकर पति-पत्नी ने एक पेड़ की डाल पर शरण ली।

रास्ता सुनसान था। चारों ओर घना जंगल था। डर के कारण वे लोग पेड़ से ही नहीं उतरे। उन्होंने वहीं रात बिताने का निश्चय किया।

दोनों सुबह से थके-हारे थे। पेड़ पर ही सो गए। आधी रात के करीब जयललिता की आँख खुली। उसे याद आया कि उन दोनों ने तो कुछ खाया ही नहीं। अवश्य ही मल्लण्णा को भी भूख लगी होगी। पोटली में पाँच लड्डू थे।

आदत के अनुसार उसने मिट्टी की सासू माँ से पूछा, 'भूख तो जोरों की लगी है। मैं दो खा लूँ, इन्हें तीन दे दूँ?' उसी पेड़ के नीचे पाँच चोर बैठे थे। चोरी के माल का बँटवारा हो रहा था। जयललिता की आवाज सुनकर उन्होंने सोचा कि निश्चय ही कोई चुड़ैल उन्हें खाने की योजना बना रही है।

वे सामान उठाकर भागने की तैयारी करने लगे। तभी जयललिता के हाथ से मिट्टी की मूर्ति गिर पड़ी। हड़बडाहट में चोरों ने समझा कि चुड़ैल ने उन पर हमला किया है। वे सब सामान छोड़कर नौ-दो ग्यारह हो गए।

जयललिता और मल्लण्णा चुपचाप नीचे उतरे और सारा कीमती सामान बाँधकर घर लौट आए। मिट्टी की सासू माँ टूट गई थी। मल्लण्णा ने पत्नी को समझाया कि शायद अब माँ स्वर्ग में चली गई हैं। उन्हें अधिक कष्ट नहीं देना चाहिए।

जयललिता ने पति की आज्ञा का पालन किया और अपनी बुद्धि से गृहस्थी चलाने लगी।

(रचना भोला 'यामिनी')




Comments

Popular posts from this blog

Phool Ka Mulya : Rabindranath Tagore (Bangla Story) फूल का मूल्य : रबीन्द्रनाथ टैगोर

Sewa Aur Bhakti: Lok-Katha (Nepal) सेवा और भक्ति नेपाली लोक-कथा

Sher Aur Ladka Munshi Premchand शेर और लड़का मुंशी प्रेमचंद