Aesop’s Story # 12 : एन्ड्रोक्लीज़ और शेर

एन्ड्रोक्लीज़ नामक एक व्यक्ति रोम के सम्राट का गुलाम था. एक दिन वह स्वयं पर होने वाले जुल्मों से तंग आकर महल से भाग गया और जंगल में जाकर छुप गया.

जंगल में उसका सामना एक शेर से हुआ, जो घायल अवस्था में था और बार-बार अपना पंजा उठा रहा था.

पहले तो एन्ड्रोक्लीज़ डरा, लेकिन फिर सहृदयता दिखाते हुए वह शेर के पास गया. शेर के पंजे में कांटा चुभा हुआ था. उसने कांटा निकाला और कुछ दिनों तक घायल शेर की देखभाल की.

एन्ड्रोक्लीज़ की देखभाल से शेर ठीक हो गया. आभार में वह एन्ड्रोक्लीज़ का हाथ चाटने लगा. फिर चुपचाप अपनी गुफ़ा में चला गया.

इधर सम्राट के सैनिक एन्ड्रोक्लीज़ को ढूंढ रहे थे. आखिर, एक दिन वह पकड़ा गया. उसे सम्राट के सामने पेश किया गया. सम्राट बहुत नाराज़ था. उसने एन्ड्रोक्लीज़ को भूखे शेर के सामने फेंक देने का आदेश दिया.

जिस दिन एन्ड्रोक्लीज़ को शेर के सामने फेंका जाना था, उस दिन एक मैदान में रोम की सारी जनता इकट्ठा हुई. सबके सामने एन्ड्रोक्लीज़ को भूखे शेर के पिंजरे में फेंक दिया गया. एन्ड्रोक्लीज़ डरा हुआ था. उसे मौत सामने दिख रही थी. वह ईश्वर को याद करने लगा.

शेर एन्ड्रोक्लीज़ की ओर बढ़ा. एन्ड्रोक्लीज़ पसीने-पसीने हो गया. शेर एन्ड्रोक्लीज़ के पास आया. डर के मारे एन्ड्रोक्लीज़ ने अपनी आँखें बंद कर ली. लेकिन यह क्या? एन्ड्रोक्लीज़ को मारने के स्थान पर शेर उसका हाथ चाटने लगा. सम्राट हैरान था, सारी जनता हैरान थी और एन्ड्रोक्लीज़ भी.

अंततः, एन्ड्रोक्लीज़ समझ गया कि हो न हो, ये वही शेर है, जिसकी घायल अवस्था में उसने देखभाल की थी. वह एन्ड्रोक्लीज़ को पहचान गया था. वह भी शेर को पुचकारने लगा और उसकी पीठ पर हाथ फ़ेरने लगा.

यह देख सम्राट ने सैनिकों को एन्ड्रोक्लीज़ को पिंजरे से बाहर निकालने का आदेश दिया. उसने एन्ड्रोक्लीज़ से पूछा, “तुमने ऐसा क्या किया कि शेर तुम्हें मारने के स्थान पर तुम्हारा हाथ चाटने लगा.”

एन्ड्रोक्लीज़ ने उसे जंगल की घटना सुना दी और बोला, “महाराज, जब शेर घायल था, तब मैंने कुछ दिनों तक ही इसकी देखभाल की थी. इस उपकार के कारण इसने मुझे नहीं मारा. लेकिन, आपकी सेवा तो मैंने बरसों की है. इसके बावजूद आप मेरी जान ले रहे हैं.”

सम्राट का दिल पसीज़ गया. उसने एन्ड्रोक्लीज़ को आज़ाद कर दिया और शेर को भी जंगल में छुड़वा दिया.

सीख (Moral of the story)

सबके प्रति सहृदयता का भाव रखो, फिर चाहे वो मनुष्य हो या पशु.
जो आप पर उपकार करें, उसके प्रति सदा कृतज्ञ रहो.

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