Ginni Rabindranath Tagore गिन्नी रबीन्द्रनाथ टैगोर
Ginni Rabindranath Tagore गिन्नी रबीन्द्रनाथ टैगोर हमारे पंडित शिवनाथ छात्रवृत्ति कक्षा से दो-तीन क्लास नीचे के अध्यापक थे। उनके दाढ़ी-मूँछ नहीं थी, बाल छँटे हुए थे और चोटी छोटी-सी थी। उन्हें देखते ही बच्चों की अन्तरात्मा सूख जाती थी। प्राणियों में देखा जाता है कि जिनके दंश होता है उनके दाँत नहीं होते। हमारे पंडित महाशय के दोनों एक साथ थे। एक तरफ से चाँटे, थप्पड़, मुक्के ऐसे बरसाते जैसे छोटे पौधों पर ओले बरसते हैं, दूसरी तरफ से तीखे वाक्यों की आग से प्राण बाहर आने को हो जाते। इनका आक्षेप था कि अब पुराने ज़माने की तरह गुरु-शिष्य सम्बन्ध नहीं रहा; अब छात्र गुरुओं की देवता के समान भक्ति नहीं करते; यह कहकर अपनी उपेक्षित महिमा बच्चों के दिमाग में बलपूर्वक भरते थे; और बीच-बीच में हुंकार उठते थे, पर उसमें इतनी छोटी बातें मिली रहती थीं कि उन्हें देवता की गर्जना मानने का भ्रम कोई नहीं कर सकता था। अगर वज्रनाद की तरह गर्जना से बाप को गाली दी जाए, तो उसके पीछे छिपी बंगाली की क्षुद्रता फौरन पकड़ में आ जाएगी। जो भी हो, हमारे स्कूल के इस तीसरी कक्षा के दूसरे विभाग के देवता को कोई इन्द्र चन्द्र वरुण ...