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Showing posts from April, 2021

Ginni Rabindranath Tagore गिन्‍नी रबीन्द्रनाथ टैगोर

Ginni Rabindranath Tagore गिन्‍नी रबीन्द्रनाथ टैगोर हमारे पंडित शिवनाथ छात्रवृत्ति कक्षा से दो-तीन क्लास नीचे के अध्यापक थे। उनके दाढ़ी-मूँछ नहीं थी, बाल छँटे हुए थे और चोटी छोटी-सी थी। उन्हें देखते ही बच्चों की अन्तरात्मा सूख जाती थी। प्राणियों में देखा जाता है कि जिनके दंश होता है उनके दाँत नहीं होते। हमारे पंडित महाशय के दोनों एक साथ थे। एक तरफ से चाँटे, थप्पड़, मुक्के ऐसे बरसाते जैसे छोटे पौधों पर ओले बरसते हैं, दूसरी तरफ से तीखे वाक्यों की आग से प्राण बाहर आने को हो जाते। इनका आक्षेप था कि अब पुराने ज़माने की तरह गुरु-शिष्य सम्बन्ध नहीं रहा; अब छात्र गुरुओं की देवता के समान भक्ति नहीं करते; यह कहकर अपनी उपेक्षित महिमा बच्चों के दिमाग में बलपूर्वक भरते थे; और बीच-बीच में हुंकार उठते थे, पर उसमें इतनी छोटी बातें मिली रहती थीं कि उन्हें देवता की गर्जना मानने का भ्रम कोई नहीं कर सकता था। अगर वज्रनाद की तरह गर्जना से बाप को गाली दी जाए, तो उसके पीछे छिपी बंगाली की क्षुद्रता फौरन पकड़ में आ जाएगी। जो भी हो, हमारे स्कूल के इस तीसरी कक्षा के दूसरे विभाग के देवता को कोई इन्द्र चन्द्र वरुण ...

The Homecoming Rabindranath Tagore यह स्वतन्त्रता/घर वापसी रबीन्द्रनाथ टैगोर

The Homecoming Rabindranath Tagore यह स्वतन्त्रता/घर वापसी रबीन्द्रनाथ टैगोर 1 पाठक चक्रवर्ती अपने मुहल्ले के लड़कों का नेता था। सब उसकी आज्ञा मानते थे। यदि कोई उसके विरुध्द जाता तो उस पर आफत आ जाती, सब मुहल्ले के लड़के उसको मारते थे। आखिरकार बेचारे को विवश होकर पाठक से क्षमा मांगनी पड़ती। एक बार पाठक ने एक नया खेल सोचा। नदी के किनारे एक लकड़ी का बड़ा लट्ठा पड़ा था, जिसकी नौका बनाई जाने वाली थी। पाठक ने कहा- "हम सब मिलकर उस लट्ठे को लुढ़काएं, लट्टे का स्वामी हम पर क्रुध्द होगा और हम सब उसका मजाक उड़ाकर खूब हंसेंगे।" सब लड़कों ने उसका अनुमोदन किया। जब खेल आरम्भ होने वाला था तो पाठक का छोटा भाई मक्खन बिना किसी से एक भी शब्द कहे उस लट्ठे पर बैठ गया। लड़के रुके और एक क्षण तक मौन रहे। फिर एक लड़के ने उसको धक्का दिया, परन्तु वह न उठा। यह देखकर पाठक को क्रोध आया। उसने कहा- "मक्खन, यदि तू न उठेगा तो इसका बुरा परिणाम होगा।" किन्तु मक्खन यह सुनकर और आराम से बैठ गया। अब यदि पाठक कुछ हल्का पड़ता, तो उसकी बात जाती रहती। बस, उसने आज्ञा दी कि लट्ठा लुढ़का दिया जाये। लड़के की आज्ञा...

Kabuliwala Rabindranath Tagore काबुलीवाला रबीन्द्रनाथ टैगोर

Kabuliwala Rabindranath Tagore काबुलीवाला रबीन्द्रनाथ टैगोर मेरी पाँच वर्ष की छोटी लड़की मिनी से पल भर भी बात किए बिना नहीं रहा जाता। दुनिया में आने के बाद भाषा सीखने में उसने सिर्फ एक ही वर्ष लगाया होगा। उसके बाद से जितनी देर तक सो नहीं पाती है, उस समय का एक पल भी वह चुप्पी में नहीं खोती। उसकी माता बहुधा डाँट-फटकार कर उसकी चलती हुई जुबान बंद कर देती है; किन्तु मुझसे ऐसा नहीं होता। मिनी का मौन मुझे ऐसा अस्वाभाविक-सा प्रतीत होता है, कि मुझसे वह अधिक देर तक सहा नहीं जाता और यही कारण है कि मेरे साथ उसके भावों का आदान-प्रदान कुछ अधिक उत्साह के साथ होता रहता है। सवेरे मैंने अपने उपन्यास के सत्तरहवें अध्‍याय में हाथ लगाया ही था कि इतने में मिनी ने आकर कहना आरम्भ कर दिया, "बाबा! रामदयाल दरबान कल ‘काक’ को कौआ कहता था। वह कुछ भी नहीं जानता, है न बाबा ?" विश्व की भाषाओं की विभिन्नता के विषय में मेरे कुछ बताने से पहले ही उसने दूसरा प्रसंग छेड़ दिया, "बाबा! भोला कहता था आकाश मुँह से पानी फेंकता है, इसी से वर्षा होती है। अच्छा बाबा, भोला झूठ-मूठ कहता है न? खाली बक-बक किया करता है, दि...

Phool Ka Mulya : Rabindranath Tagore (Bangla Story) फूल का मूल्य : रबीन्द्रनाथ टैगोर

॥1॥ शीतकाल के दिन थे। शीतकाल की प्रचंडता के कारण पौधे पृष्पविहीन थे। वन-उपवन में उदासी छाई हुई थी। फूलों के अभाव में पौधे श्रीहीन दिखाई दे रहे थे। ऐसे उदास वातावरण में एक सरोवर के मध्य कमल का फूल खिला हुआ देखकर उसका माली प्रसन्‍न हो उठा। उस माली का नाम सुदास था। ऐसा सुंदर फूल तो कभी उसके सरोवर में खिला ही नहीं था। सुदास उस फूल की सुंदरता पर मुग्ध हो उठा। उसने सोचा कि मैं यदि यह पुष्प राजा साहब के पास लेकर जाऊँगा, तो वह प्रसन्न हो उठेंगे। राजा साहब पुष्पों की सुंदरता के दीवाने थे। इस शीतकाल में जब पुष्पों का अभाव है, तब इतना सुंदर पुष्प देखकर उसे इसका मनचाहा मूल्य मिलने की उम्मीद थी। उसी समय एक शीत लहर आई। सुदास को लगा कि यह पवन भी कमल के खिलने पर अपनी प्रसन्नता प्रकट कर रही है। माली को यह सब शुभ लक्षण लगे। ॥2॥ वह सहस्त्रदल कमल के फूल को देखकर मन-ही-मन फूला नहीं समा रहा था। वह उस फूल को लेकर राजमहल की ओर चल पड़ा। वह मनचाहे पुरस्कार की कामना में डूबा हुआ था। राजमहल पहुँचकर उसने राजा को समाचार भिजवाया। वह विचारमग्न था कि अभी उसे राजा बुलाएँगे। राजा इस सुंदर पुष्प को देखकर अत्यंत प्रसन्न ह...

The Postmaster Rabindranath Tagore पोस्टमास्टर रबीन्द्रनाथ टैगोर

The Postmaster Rabindranath Tagore पोस्टमास्टर रबीन्द्रनाथ टैगोर काम शुरू करते ही पहले पहल पोस्टमास्टर को उलापुर गांव आना पड़ा। गांव बहुत साधारण था। गांव के पास ही एक नील-कोठी थी। इसीलिए कोठी के स्वामी ने बहुत कोशिश करके यह नया पोस्टऑफिस खुलवाया था। हमारे पोस्टमास्टर कलकत्ता के थे। पानी से निकलकर सूखे में डाल देने से मछली की जो दशा होती है वही दशा इस बड़े गांव में आकर इन पोस्टमास्टर की हुई। एक अंधेरी आठचाला में उनका ऑफिस था, पास ही काई से घिरा एक तालाब था, जिसके चारों ओर जंगल था। कोठी में गुमाश्ते वगैरह जितने भी कर्मचारी थे उन्हें अक्सर फुर्सत नहीं रहती थी, न वे शिष्टजनों से मिलने-जुलने के योग्य ही थे। खासतौर से कलकत्ता के बाबू ठीक तरह से मिलना-जुलना नहीं जानते। नई जगह में पहुंचकर वे या तो उद्धत हो जाते हैं या अप्रतिभ। इसलिए स्थानीय लोगों से उनका मेल-जोल नहीं हो पाता। इधर काम भी ज्यादा नहीं था। कभी-कभी एकाध कविता लिखने की कोशिश करते। उनमें इस प्रकार के भाव व्यक्त करते-दिनभर तरु-पल्लवों का कम्पन और आकाश के बादल देखते-देखते जीवन बड़े सुख से कट जाता है। लेकिन अन्तर्यामी जानते हैं कि यदि अ...

The Child's Return Rabindranath Tagore अनमोल भेंट/मुन्ने की वापसी रबीन्द्रनाथ टैगोर

The Child's Return Rabindranath Tagore अनमोल भेंट/मुन्ने की वापसी रबीन्द्रनाथ टैगोर 1 रायचरण बारह वर्ष की आयु से अपने मालिक का बच्‍चा खिलाने पर नौकर हुआ था। उसके पश्चात् काफी समय बीत गया। नन्हा बच्‍चा रायचरण की गोद से निकलकर स्कूल में प्रविष्ट हुआ, स्कूल से कॉलिज में पहुँचा, फिर एक सरकारी स्थान पर लग गया। किन्तु रायचरण अब भी बच्‍चा खिलाता था, यह बच्‍चा उसकी गोद के पाले हुए अनुकूल बाबू का पुत्र था। बच्‍चा घुटनों के बल चलकर बाहर निकल जाता। जब रायचरण दौड़कर उसको पकड़ता तो वह रोता और अपने नन्हे-नन्हे हाथों से रायचरण को मारता। रायचरण हंसकर कहता- हमारा भैया भी बड़ा होकर जज साहब बनेगा- जब वह रायचरण को चन्ना कहकर पुकारता तो उसका हृदय बहुत हर्षित होता। वह दोनों हाथ पृथ्वी पर टेककर घोड़ा बनता और बच्‍चा उसकी पीठ पर सवार हो जाता। इन्हीं दिनों अनुकूल बाबू की बदली परयां नदी के किनारे एक जिले में हो गई। नए स्थान की ओर जाते हुए कलकत्ते से उन्होंने अपने बच्चे के लिए मूल्यवान आभूषण और कपड़ों के अतिरिक्त एक छोटी-सी सुन्दर गाड़ी भी खरीदी। वर्षा ऋतु थी। कई दिनों से मूसलाधर वर्षा हो रही थी। ईश्वर-ईश्वर ...

Tota Rabindranath Tagore तोता रबीन्द्रनाथ टैगोर

Tota Rabindranath Tagore तोता रबीन्द्रनाथ टैगोर 1 एक था तोता । वह बड़ा मूर्ख था। गाता तो था, पर शास्त्र नही पढ़ता था । उछलता था, फुदकता था, उडता था, पर यह नहीं जानता था कि क़ायदा-क़ानून किसे कहते हैं । राजा बोले, ''ऐसा तोता किस काम का? इससे लाभ तो कोई नहीं, हानि जरूर है । जंगल के फल खा जाता है, जिससे राजा-मण्डी के फल-ब़ाजार में टोटा पड़ जाता है ।'' मंत्री को बुलाकर कहा, ''इस तोते को शिक्षा दो!'' 2 तोते को शिक्षा देने का काम राजा के भानजे को मिला । पण्डितों की बैठक हुई । विषय था, ''उक्त जीव की अविद्या का कारण क्या है?'' बड़ा गहरा विचार हुआ । सिद्धान्त ठहरा : तोता अपना घोंसला साधारण खर-पात से बनाता है । ऐसे आवास में विद्या नहीं आती । इसलिए सबसे पहले तो यह आवश्यक है कि इसके लिए कोई बढ़िया-सा पिंजरा बना दिया जाय । राज-पण्डितों को दक्षिणा मिली और वे प्रसन्न होकर अपने-अपने घर गये । 3 सुनार बुलाया गया । वह सोने का पिंजरा तैयार करने में जुट पड़ा । पिंजरा ऐसा अनोखा बना कि उसे देखने के लिए देश-विदेश के लोग टूट पडे । कोई कहता, ''शिक्षा की तो...

Kashmiri Seb Munshi Premchand कश्मीरी सेब मुंशी प्रेम चंद

Kashmiri Seb Munshi Premchand कश्मीरी सेब मुंशी प्रेम चंद कल शाम को चौक में दो-चार जरूरी चीजें खरीदने गया था। पंजाबी मेवाफरोशों की दूकानें रास्ते ही में पड़ती हैं। एक दूकान पर बहुत अच्छे रंगदार,गुलाबी सेब सजे हुए नजर आये। जी ललचा उठा। आजकल शिक्षित समाज में विटामिन और प्रोटीन के शब्दों में विचार करने की प्रवृत्ति हो गई है। टमाटो को पहले कोई सेंत में भी न पूछता था। अब टमाटो भोजन का आवश्यक अंग बन गया है। गाजर भी पहले ग़रीबों के पेट भरने की चीज थी। अमीर लोग तो उसका हलवा ही खाते थे; मगर अब पता चला है कि गाजर में भी बहुत विटामिन हैं, इसलिए गाजर को भी मेजों पर स्थान मिलने लगा है। और सेब के विषय में तो यह कहा जाने लगा है कि एक सेब रोज खाइए तो आपको डाक्टरों की जरूरत न रहेगी। डाक्टर से बचने के लिए हम निमकौड़ी तक खाने को तैयार हो सकते हैं। सेब तो रस और स्वाद में अगर आम से बढक़र नहीं है तो घटकर भी नहीं। हाँ, बनारस के लंगड़े और लखनऊ के दसहरी और बम्बई के अल्फाँसो की बात दूसरी है। उनके टक्कर का फल तो संसार में दूसरा नहीं है मगर; मगर उनमें विटामिन और प्रोटीन है या नहीं, है तो काफी है या नहीं, इन विषयो...

Saamp Ka Mani Munshi Premchand साँप का मणि मुंशी प्रेमचंद

Saamp Ka Mani Munshi Premchand साँप का मणि मुंशी प्रेमचंद मैं जब जहाज़ पर नौकर था तो एक बार कोलंबो भी गया था। बहुत दिनों से वहाँ जाने को मन चाहता था, खासकर रावण की लंकापुरी देखने के लिए । कलकत्ते से सात दिन में जहाज कोलम्बो पहुँचा । मेरा एक दोस्त वहां किसी कारखाने में नौकर था, मैंने पहले ही उसे खत डाल दिया था । वह घाट पर आ पहुँचा था। दम दोनों गले मिले और कोलम्बो की सैर करने चले। जहाज़ वहां चार दिन रुकनेवाला था। मैंने कप्तान साहब से चार दिन की छुट्टी ले ली । जब हम दोनों खा-पी चुके, तो गप शप होने लगी। वहाँ के सीप और मोती की बात छिड़ गई। मेरे दोस्त ने कहा-यह सब चीज़ें तो यहाँ समुद्र में निकलती ही हैं और आसानी से मिल जायेंगी, मगर मैं तुम्हें एक ऐसी चीज़ दूंगा जो शायद तुमने कभी न देखी हो । हाँ, उसका हाल किताबों में पढ़ा होगा। मैंने ताअजुब्ब से पूछा-वह कौन-सी चीज है ? 'साँप का मणि।" मैं चौंक उठा और बोला-साँप का मणि ! उसका जिक्र तो मैंने किस्से-कहानियों में सुना है कौर यह भी सुना है कि उसका मोल सात बादशाहों के बराबर होता है । क्या साँप का असली मणि ? वह बोले-हां भाई, असली मणि । तुम्हें मि...

Sailani Bandar Munshi Premchand सैलानी बंदर मुंशी प्रेम चंद

Sailani Bandar Munshi Premchand सैलानी बंदर मुंशी प्रेम चंद 1 जीवनदास नाम का एक गरीब मदारी अपने बन्दर मन्नू को नचाकर अपनी जीविका चलाया करता था। वह और उसकी स्त्री बुधिया दोनों मन्नू को बहुत प्यार करते थे। उनके कोई सन्तान न थी, मन्नू ही उनके स्नेह और प्रेम का पात्र था। दोनों उसे अपने साथ खिलाते और अपने साथ सुलाते थे: उनकी दृष्टि में मन्नू से अधिक प्रिय वस्तु न थी। जीवनदास उसके लिए एक गेंद लाया था। मन्नू आंगन में गेंद खेला करता था। उसके भोजन करने को एक मिट्टी का प्याला था, ओढ़ने को कम्बल का एक टुकड़ा, सोने को एक बोरिया, और उचकने के लिए छप्पर में एक रस्सी। मन्नू इन वस्तुओं पर जान देता था। जब तक उसके प्याले में कोई चीज न रख दी जाय वह भोजन न करता था। अपना टाट और कम्बल का टुकड़ा उसे शाल और गद्दे से भी प्यारा था। उसके दिन बड़े सुख से बीतते थे। वह प्रात:काल रोटियां खाकर मदारी के साथ तमाशा करने जाता था। वह नकलें करने मे इतना निपुण था कि दर्शकवृन्द तमाशा देखकर मुग्ध हो जाते थे। लकड़ी हाथ में लेकर वृद्धों की भांति चलता, आसन मारकर पूजा करता, तिलक-मुद्रा लगाता, फिर पोथी बगल में दबाकर पाठ करने चलता। ...

Mitthu Munshi Premchand मिट्ठू मुंशी प्रेम चंद

Mitthu Munshi Premchand मिट्ठू मुंशी प्रेम चंद बंदरों के तमाशे तो तुमने बहुत देखे होंगे। मदारी के इशारों पर बंदर कैसी-कैसी नकलें करता है, उसकी शरारतें भी तुमने देखी होंगी। तुमने उसे घरों से कपड़े उठाकर भागते देखा होगा। पर आज हम तुम्हें एक ऐसा हाल सुनाते हैं, जिससे मालूम होगा कि बंदर लड़कों से भी दोस्ती कर सकता है। कुछ दिन हुए लखनऊ में एक सरकस-कंपनी आयी थी। उसके पास शेर, भालू, चीता और कई तरह के और भी जानवर थे। इनके सिवा एक बंदर मिट्ठू भी था। लड़कों के झुंड-के-झुंड रोज इन जानवरों को देखने आया करते थे। मिट्ठू ही उन्हें सबसे अच्छा लगता। उन्हीं लड़कों में गोपाल भी था। वह रोज आता और मिट्ठू के पास घंटों चुपचाप बैठा रहता। उसे शेर, भालू, चीते आदि से कोई प्रेम न था। वह मिट्ठू के लिए घर से चने, मटर, केले लाता और खिलाता। मिट्ठू भी उससे इतना हिल गया था कि बगैर उसके खिलाए कुछ न खाता। इस तरह दोनों में बड़ी दोस्ती हो गयी। एक दिन गोपाल ने सुना कि सरकस कंपनी वहां से दूसरे शहर में जा रही है। यह सुनकर उसे बड़ा रंज हुआ। वह रोता हुआ अपनी मां के पास आया और बोला, “अम्मा, मुझे एक अठन्नी1 दो, मैं जाकर मिट्ठू को...

Eidgah Munshi Premchand ईदगाह मुंशी प्रेमचंद

1 रमजान के पूरे तीस रोजों के बाद ईद आयी है। कितना मनोहर, कितना सुहावना प्रभाव है। वृक्षों पर अजीब हरियाली है, खेतों में कुछ अजीब रौनक है, आसमान पर कुछ अजीब लालिमा है। आज का सूर्य देखो, कितना प्यारा, कितना शीतल है, यानी संसार को ईद की बधाई दे रहा है। गाँव में कितनी हलचल है। ईदगाह जाने की तैयारियाँ हो रही हैं। किसी के कुरते में बटन नहीं है, पड़ोस के घर में सुई-धागा लेने दौड़ा जा रहा है। किसी के जूते कड़े हो गए हैं, उनमें तेल डालने के लिए तेली के घर पर भागा जाता है। जल्दी-जल्दी बैलों को सानी-पानी दे दें। ईदगाह से लौटते-लौटते दोपहर हो जायगी। तीन कोस का पैदल रास्ता, फिर सैकड़ों आदमियों से मिलना-भेंटना, दोपहर के पहले लौटना असम्भव है। लड़के सबसे ज्यादा प्रसन्न हैं। किसी ने एक रोजा रखा है, वह भी दोपहर तक, किसी ने वह भी नहीं, लेकिन ईदगाह जाने की खुशी उनके हिस्से की चीज है। रोजे बड़े-बूढ़ों के लिए होंगे। इनके लिए तो ईद है। रोज ईद का नाम रटते थे, आज वह आ गयी। अब जल्दी पड़ी है कि लोग ईदगाह क्यों नहीं चलते। इन्हें गृहस्थी की चिंताओं से क्या प्रयोजन! सेवैयों के लिए दूध ओर शक्कर घर में है या नहीं, इनक...